दबंग, पटवारी और पुलिस की साँठगाँठ से आदिवासियों को जमीन से खदेड़ने की साजिश
दबंगों ने पुलिस के साथ मिलकर आदिवासियों को बेदखल करने की रची साजिश
आदिवासियों ने कलेक्टर से लगाई न्याय की गुहार
70 साल से आदिवासी कर रहे थे खेती, अब अचानक दबंग बने ज़मींदार
शिवपुरी। शिवपुरी जिले में आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनों पर सुनियोजित तरीके से कब्जा जमाने का षड्यंत्र अपने चरम पर है। पिछोर तहसील के ग्राम मुहार में रहने वाले आदिवासी परिवार, जो बीते सात दशकों से अपनी जमीन पर खेती कर रहे थे, आज बेदखली की दहलीज पर खड़े हैं। हैरानी की बात यह है कि यह सब कुछ खुलेआम पुलिस संरक्षण में दबंगों द्वारा किया जा रहा है, जबकि संबंधित राजस्व विभाग मूकदर्शक बना हुआ है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार ग्राम मुहार निवासी मंगू पुत्र मनका आदिवासी और उनके परिवारजनों के पास सर्वे नंबर 1861 की 4.40 हेक्टेयर जमीन है, जिस पर वे 70 वर्षों से लगातार खेती कर आजीविका चला रहे थे। उक्त जमीन के सभी दस्तावेज उनके पास मौजूद हैं और कागज़ों में उनके पुरखों के नाम दर्ज हैं। बावजूद इसके, हाल ही में कंप्यूटर रिकॉर्ड में अचानक जमीन के खसरा-खतौनी सर्वे नंबर 1267, 1331 और 1333 के तहत यह ज़मीन गांव के रज्जनसिंह यादव, लक्ष्मी प्रजापति, रामकुमार शर्मा, उषादेवी यादव, राजकुमारी यादव और जयदेवी यादव के नाम दर्ज कर दी गई।
जब मंगू आदिवासी और उनके परिजन अपनी जमीन पर बोनी करने पहुंचे, तो दबंगों ने उन्हें धमका कर रोक दिया और कहा कि अब यह ज़मीन अब उनके नाम है। पीड़ित जब संबंधित पटवारी के पास शिकायत लेकर पहुंचे, तो जवाब मिला — "हम कुछ नहीं कर सकते।" तहसील कार्यालय में भी उन्हें कोई सुनवाई नहीं मिली। प्रशासन की निष्क्रियता ने दबंगों को और अधिक बेलगाम बना दिया है।
प्रार्थियों का आरोप है कि दबंगों के साथ स्थानीय पुलिस की मिलीभगत है। बार-बार आवेदन देने के बावजूद कोई कार्रवाही नहीं हुई, बल्कि अब पुलिस दबंगों के साथ आकर आदिवासियों को बेदखल करने की रणनीति में शामिल हो रही है। यह सवाल खड़ा करता है कि आखिर किसके इशारे पर प्रशासन आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनों की लूट को मौन स्वीकृति दे रहा है?पुलिस को क्या अधिकार है जमीन खाली कराने का ।
थक-हारकर आज मंगू पुत्र मनका आदिवासी ने अन्य पीड़ित आदिवासी परिवारों के साथ मिलकर जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें जमीन के रिकॉर्ड में सुधार कर उन्हें न्याय दिलाने की मांग की गई है। उनका कहना है कि यदि जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो वे जिला मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन के लिए विवश होंगे।
यह कोई एकमात्र मामला नहीं है। शिवपुरी जिले में खासकर पिछोर, करेरा, बैराड़ और पोहरी इलाकों में आदिवासी भूमि हड़पने के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। दबंग, अफसरशाही और भ्रष्ट पटवारी-माफिया गठजोड़ गरीब आदिवासियों की जमीनें निगल रहा है, और शासन-प्रशासन आँख मूंदे बैठा है।
शिवपुरी प्रशासन की निष्क्रियता अब जनाक्रोश का कारण बन रही है। यदि आदिवासियों की पुश्तैनी जमीनों को लेकर शीघ्र न्यायिक और प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई, तो इस मामले को लेकर आने वाले समय में जिले में सहरिया क्रांति आंदोलन कर सकता है। अब सवाल यह है कि क्या कलेक्टर इस अन्याय पर संज्ञान लेंगे या आदिवासियों की पुश्तैनी जमीन भी सिस्टम की बलि चढ़ जाएगी?
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